सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवारों के लिए नौकरी का अधिकार नहीं
प्रतीक्षा सूची का महत्व
नौकरी और प्रवेश: यदि कोई उम्मीदवार नौकरी या प्रवेश परीक्षा की प्रतीक्षा सूची में है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि भविष्य में उसे उसी पद पर नौकरी मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि प्रतीक्षा सूची में होना अपने आप में कोई अधिकार नहीं देता। उम्मीदवार को केवल तब विचार किया जाएगा जब प्राथमिक चयनित उम्मीदवार उस पद को ग्रहण नहीं करता है।
कोर्ट का आदेश
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कोलकाता उच्च न्यायालय ने पहले प्रसार भारती को निर्देश दिया था कि वह आगामी भर्ती प्रक्रिया में प्रतीक्षा सूची में शीर्ष पर रहने वाले तकनीशियन को नियुक्त करे। यह आदेश इसलिए दिया गया था क्योंकि प्रसार भारती ने उसे भविष्य में किसी रिक्ति के लिए नौकरी देने का आश्वासन दिया था।
प्रतीक्षा सूची में उम्मीदवारों के अधिकार
प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवारों को रोजगार का दावा नहीं कर सकते।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब इस आदेश को पलट दिया है। न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि प्रतीक्षा सूची केवल उसी भर्ती प्रक्रिया के लिए सीमित है जिसके लिए उम्मीदवार ने आवेदन किया है और इसे अगली भर्ती प्रक्रिया पर स्वचालित रूप से लागू नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि प्रतीक्षा सूची में शामिल उम्मीदवार केवल तब तक विचाराधीन रह सकते हैं जब तक चयनित उम्मीदवार पद ग्रहण नहीं करता। इसके बाद, उनके पास कोई अधिकार नहीं है।
भविष्य की रिक्तियों के लिए कोई अधिकार नहीं
प्रतीक्षा सूची का उद्देश्य भर्ती की गारंटी नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उम्मीदवार को भविष्य में उत्पन्न होने वाली किसी नई रिक्ति के लिए नियुक्ति की मांग करने का अधिकार नहीं है। प्रतीक्षा सूची का उद्देश्य केवल वर्तमान भर्ती प्रक्रिया में भर्ती के लिए एक विकल्प प्रदान करना है, न कि भविष्य की भर्ती की गारंटी देना।
उच्च न्यायालय का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पटना उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा।
कोर्ट ने कहा कि उच्च न्यायालय ने इस महत्वपूर्ण तथ्य को नजरअंदाज किया कि प्रतीक्षा सूची 1997 में उपलब्ध रिक्तियों के भरने के बाद समाप्त हो गई थी और भर्ती प्रक्रिया पूरी हो गई थी। इसलिए, तकनीशियन की भर्ती का उच्च न्यायालय का आदेश सही नहीं था।
कानूनी प्रक्रिया का महत्व
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी आश्वासन या बयान की गंभीरता होती है, लेकिन यदि इसका कार्यान्वयन किसी वैधानिक नियम या कानून का उल्लंघन करता है, तो प्रभावित पक्ष अदालत का सहारा ले सकता है।
