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खान सर: संघर्ष से सफलता की कहानी

खान सर, जिनका असली नाम फैज़ल खान है, ने कठिनाइयों का सामना करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। उनका सपना हमेशा से सेना में भर्ती होने का था, लेकिन असफलताओं के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया और एक छात्र की सफलता ने उनकी पहचान को और बढ़ाया। खान सर ने अपने कोचिंग संस्थान की स्थापना की, जहां उन्होंने छात्रों को शिक्षा देने का संकल्प लिया। एक कंपनी द्वारा 107 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को ठुकराकर, उन्होंने साबित किया कि उनके लिए शिक्षा का मतलब केवल पैसे कमाना नहीं, बल्कि छात्रों की जिंदगी में बदलाव लाना है।
 
खान सर: संघर्ष से सफलता की कहानी

खान सर का परिचय

खान सर, जिनका असली नाम फैज़ल खान है, आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। हजारों छात्र उनकी शिक्षाओं से लाभान्वित होते हैं। उनका सपना हमेशा से सेना में भर्ती होने का था। उनके पिता एक जनरल कॉन्ट्रैक्टर थे और माँ घर की देखभाल करती थीं। उत्तर प्रदेश के एक छोटे कस्बे में जन्मे खान बचपन से ही प्रतिभाशाली थे। हालांकि, उनके परिवार में आर्थिक तंगी थी, लेकिन उनके सपने बड़े थे। उन्होंने एनडीए, पॉलिटेक्निक और सैनिक स्कूल में दाखिले के लिए परीक्षाएँ दीं, लेकिन असफल रहे। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे।


पहले छात्र की सफलता

खान सर ने बाद में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का निर्णय लिया। उन्होंने एक छात्र को पढ़ाना शुरू किया, और यह देखकर सभी हैरान रह गए कि उस छात्र ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह खबर तेजी से फैली और अन्य छात्र भी उनसे ट्यूशन लेने आने लगे। हालांकि, जीवन में कई चुनौतियाँ अभी बाकी थीं। एक दिन, पढ़ाई के बाद खान सर को केवल 40 रुपये मिले, जबकि घर जाने का किराया 90 रुपये था। उन्होंने किसी से मदद नहीं मांगी और पैदल ही घर लौटे।


कोचिंग संस्थान की स्थापना

उस रात गंगा के किनारे बैठकर खान सर ने निर्णय लिया कि वह अपना कोचिंग संस्थान खोलेंगे। अपने दोस्तों की मदद से उन्होंने एक छोटा सा कोचिंग संस्थान स्थापित किया। जैसे ही संस्थान चलने लगा, बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। लेकिन एक रात, कोचिंग संस्थान पर बम से हमला हुआ। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी और अगली सुबह छात्रों ने फिर से संस्थान को स्थापित किया।


107 करोड़ का प्रस्ताव ठुकराया

एक दिन, एक कंपनी ने खान सर को 107 करोड़ रुपये का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि उनके छात्रों को उनकी आवश्यकता है। उनके लिए पढ़ाना केवल पैसे कमाने का साधन नहीं, बल्कि छात्रों की जिंदगी में बदलाव लाने का एक तरीका है।