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अब ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर पर पढ़ाए जाएंगे भारतीय ज्ञान परंपरा के पाठ

शिक्षा मंत्रालय देशभर में स्कूली छात्रों के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा पर जोर देता रहा है। हालांकि भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा का दायरा ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन तक बढ़ने जा रहा है। यूजी और पीजी स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा के कई नए कोर्स सुझाए गए हैं।
 
नई दिल्ली, 16 अप्रैल (आईएएनएस)| शिक्षा मंत्रालय देशभर में स्कूली छात्रों के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा पर जोर देता रहा है। हालांकि भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा का दायरा ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन तक बढ़ने जा रहा है। यूजी और पीजी स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा के कई नए कोर्स सुझाए गए हैं।  भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित इन नए पाठ्यक्रमों में फाउंडेशन और कुछ ऐच्छिक कोर्स हैं। ऐच्छिक कोर्स में भारतीय भाषा विज्ञान, भारतीय वास्तु शास्त्र, भारतीय तर्कशास्त्र, धातु शास्त्र, आदि हैं। इनमें भारतीय ज्योतिषीय उपकरण, मूर्ति विज्ञान, बीज गणित, भारतीय वाद्य यंत्र, पूर्व ब्रिटिशकालीन का जल प्रबंधन भी है।  फाउंडेशन कोर्स में वेदांग, भारतीय सभ्यता व साहित्य, भारतीय गणित, ज्योतिष, भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान व भारतीय कृषि जैसे विषय हैं।  इसके अलावा देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के लिए मूर्ति पूजा, औषधि प्रणाली, ज्योतिषीय उपकरण, वेदांग दर्शन, साहित्य, स्वास्थ्य दर्शन और कृषि से जुड़े पाठ्यक्रम उपलब्ध होंगे।  शैक्षणिक सत्र 2023-24 से ग्रेजुएशन और पोस्ट क्रिएशन दोनों ही स्तरों पर छात्रों के लिए यह पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे। यह नई पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों के अंतर्गत की गई है। यूजीसी ने इसके लिए एक विशेष मसौदा भी तैयार किया है।  यूजीसी के मुताबिक देशभर के सभी विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों और सभी राज्यों को भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रमों का मसौदा भेज दिया गया है। विभिन्न राज्य व शिक्षण संस्थान 30 अप्रैल तक इस विषय पर यूजीसी को अपने सुझाव भेज सकते हैं। बीजेपी का कहना है कि इन पाठ्यक्रमों का मसौदा यूजीसी की उच्चस्तरीय समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों के तहत तैयार किया है।  यूजीसी चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थानों में एफवाईयूपी यानी 4 ईयर अंडर ग्रेजुएशन प्रोग्राम के तहत दाखिले होंगे। अंडर ग्रेजुएशन पाठ्यक्रमों के इन छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े एक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे। विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले छात्रों को कम से कम पांच प्रतिशत क्रेडिट भारतीय ज्ञान आधारित पाठ्यक्रम से मिलेंगे।  यूजीसी का मानना है कि इसलिए यह आवश्यक है कि छात्रों को इस नए पाठ्यक्रम के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। इसलिए छात्रों को इस कोर्स की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को स्नातक प्रोग्राम के पाठ्यक्रम के पहले चार सेमेस्टर में भारतीय ज्ञान परंपरा के कोर्स को रखना होगा। हालांकि यह ऐच्छिक कोर्स होगा।  वहीं भारतीय वैदिक गणित तो जल्द ही एक विषय के रूप में आईआईटी व ऐसे ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों के छात्रों का सिलेबस बन सकता है।  देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों समेत कई अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में भारतीय वैदिक गणित को लाने की तैयारी की गई है। भारतीय वैदिक गणित, भारतीय दर्शनशास्त्र, भारतीय संस्कृत और विज्ञान एवं भारतीय सौंदर्यशास्त्र, उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाए जाएंगे। इसके लिए बकायदा शिक्षा मंत्रालय की ओर से बड़ी पहल की गई है।  इन विषयों को आने वाले नए शैक्षणिक सत्र से ही लागू किया जा सकता है। इसके लिए प्रारंभिक कदम भी उठाए गए हैं जिसके अंतर्गत देश भर के सभी आईआईटी संस्थानों, सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति व समस्त महाविद्यालयों के प्राचार्यों से आधिकारिक तौर पर संपर्क किया है।  इन सभी को यूजीसी ने बकायदा एक पत्र भेजा है। पत्र में यूजीसी की ओर से कहा गया है कि यह कदम संस्कृत के विकास और गुणवतापूर्ण ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन संस्कृत शिक्षण अधिगम सामग्री को विकसित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
नई दिल्ली, 17 अप्रैल- शिक्षा मंत्रालय देशभर में स्कूली छात्रों के लिए भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा पर जोर देता रहा है। हालांकि भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ी शिक्षा का दायरा ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन तक बढ़ने जा रहा है। यूजी और पीजी स्तर पर भारतीय ज्ञान परंपरा के कई नए कोर्स सुझाए गए हैं।

भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित इन नए पाठ्यक्रमों में फाउंडेशन और कुछ ऐच्छिक कोर्स हैं। ऐच्छिक कोर्स में भारतीय भाषा विज्ञान, भारतीय वास्तु शास्त्र, भारतीय तर्कशास्त्र, धातु शास्त्र, आदि हैं। इनमें भारतीय ज्योतिषीय उपकरण, मूर्ति विज्ञान, बीज गणित, भारतीय वाद्य यंत्र, पूर्व ब्रिटिशकालीन का जल प्रबंधन भी है।

फाउंडेशन कोर्स में वेदांग, भारतीय सभ्यता व साहित्य, भारतीय गणित, ज्योतिष, भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान व भारतीय कृषि जैसे विषय हैं।

इसके अलावा देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रों के लिए मूर्ति पूजा, औषधि प्रणाली, ज्योतिषीय उपकरण, वेदांग दर्शन, साहित्य, स्वास्थ्य दर्शन और कृषि से जुड़े पाठ्यक्रम उपलब्ध होंगे।

शैक्षणिक सत्र 2023-24 से ग्रेजुएशन और पोस्ट क्रिएशन दोनों ही स्तरों पर छात्रों के लिए यह पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे। यह नई पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रावधानों के अंतर्गत की गई है। यूजीसी ने इसके लिए एक विशेष मसौदा भी तैयार किया है।

यूजीसी के मुताबिक देशभर के सभी विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों और सभी राज्यों को भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित पाठ्यक्रमों का मसौदा भेज दिया गया है। विभिन्न राज्य व शिक्षण संस्थान 30 अप्रैल तक इस विषय पर यूजीसी को अपने सुझाव भेज सकते हैं। बीजेपी का कहना है कि इन पाठ्यक्रमों का मसौदा यूजीसी की उच्चस्तरीय समिति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिशों के तहत तैयार किया है।

यूजीसी चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार के मुताबिक उच्च शिक्षण संस्थानों में एफवाईयूपी यानी 4 ईयर अंडर ग्रेजुएशन प्रोग्राम के तहत दाखिले होंगे। अंडर ग्रेजुएशन पाठ्यक्रमों के इन छात्रों को भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़े एक पाठ्यक्रम उपलब्ध कराए जाएंगे। विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने वाले छात्रों को कम से कम पांच प्रतिशत क्रेडिट भारतीय ज्ञान आधारित पाठ्यक्रम से मिलेंगे।

यूजीसी का मानना है कि इसलिए यह आवश्यक है कि छात्रों को इस नए पाठ्यक्रम के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। इसलिए छात्रों को इस कोर्स की पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को स्नातक प्रोग्राम के पाठ्यक्रम के पहले चार सेमेस्टर में भारतीय ज्ञान परंपरा के कोर्स को रखना होगा। हालांकि यह ऐच्छिक कोर्स होगा।

वहीं भारतीय वैदिक गणित तो जल्द ही एक विषय के रूप में आईआईटी व ऐसे ही सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों के छात्रों का सिलेबस बन सकता है।

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों समेत कई अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में भारतीय वैदिक गणित को लाने की तैयारी की गई है। भारतीय वैदिक गणित, भारतीय दर्शनशास्त्र, भारतीय संस्कृत और विज्ञान एवं भारतीय सौंदर्यशास्त्र, उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ाए जाएंगे। इसके लिए बकायदा शिक्षा मंत्रालय की ओर से बड़ी पहल की गई है।

इन विषयों को आने वाले नए शैक्षणिक सत्र से ही लागू किया जा सकता है। इसके लिए प्रारंभिक कदम भी उठाए गए हैं जिसके अंतर्गत देश भर के सभी आईआईटी संस्थानों, सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति व समस्त महाविद्यालयों के प्राचार्यों से आधिकारिक तौर पर संपर्क किया है।

इन सभी को यूजीसी ने बकायदा एक पत्र भेजा है। पत्र में यूजीसी की ओर से कहा गया है कि यह कदम संस्कृत के विकास और गुणवतापूर्ण ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन संस्कृत शिक्षण अधिगम सामग्री को विकसित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।