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5वीं व 8वीं कक्षा के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने के फैसले का विरोध

कर्नाटक शिक्षा विभाग द्वारा कक्षा 5 और 8 के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने के फैसले ने राज्य में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। माता-पिता और छात्र संगठनों के एक वर्ग ने फैसले पर आपत्ति जताई है और छात्रों के लिए भेदभावपूर्ण होने की आशंका व्यक्त की है।
 
बेंगलुरू, 23 दिसंबर (आईएएनएस)| कर्नाटक शिक्षा विभाग द्वारा कक्षा 5 और 8 के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने के फैसले ने राज्य में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। माता-पिता और छात्र संगठनों के एक वर्ग ने फैसले पर आपत्ति जताई है और छात्रों के लिए भेदभावपूर्ण होने की आशंका व्यक्त की है। कर्नाटक प्रदेश सामान्य नागरिक ध्वनि वेदिके के अध्यक्ष एस. लक्ष्मीनारायण ने शिक्षा मंत्री बी.सी. फैसले पर नागेश की इस फैसल के लिए निंदा की। शिक्षा मंत्री ने शुक्रवार को कहा था कि यह सोचा समझा निर्णय है।  उन्होंने कहा कि यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ है। इससे करोड़ों अभिभावकों और छात्रों में खलबली मच गई। उन्होंने फैसले को वापस लेने की मांग की।  कर्नाटक शिक्षा विभाग उन छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित कर रहा है जो राज्य पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे हैं। सीबीएसई स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित नहीं की जाती है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में भी परीक्षा नहीं कराई जाती है। बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि यह भेदभाव है।  परीक्षा आयोजित करने की अधिसूचना 12 दिसंबर को जारी की गई थी। छात्र दो महीने में सार्वजनिक परीक्षा की तैयारी कैसे कर सकते हैं, इस पर सवाल उठ रहे हैं।  लक्ष्मीनारायण ने कहा कि मंत्री नागेश ने चुनाव के लिए दिखावा करने के को यह फैसला किया। मंत्री नागेश ने कहा था कि बच्चों की सीखने की क्षमता में सुधार के लिए 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित की जाएगी।  इस संबंध में दिए गए आदेश में कहा गया है कि यह फैसला इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कक्षा 1 और 9 में पढ़ने वाले छात्रों के लिए चल रही सतत व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली के तहत छात्रों के समग्र प्रदर्शन को आंकना मुश्किल हो रहा है।  मंत्री नागेश ने कहा था कि यह देखा गया है कि एसएसएलसी (कक्षा 10) की परीक्षा देते समय बच्चे डरे हुए रहते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है।  अधिकारियों का कहना है कि कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए परीक्षा एसएसएलसी बोर्ड परीक्षा की तरह होगी, लेकिन यह इतनी कठिन नहीं होगी। यह निर्णय लिया गया है कि कोई भी छात्र अनुत्तीर्ण नहीं होना चाहिए।
बेंगलुरू, 24 दिसंबर - कर्नाटक शिक्षा विभाग द्वारा कक्षा 5 और 8 के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने के फैसले ने राज्य में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। माता-पिता और छात्र संगठनों के एक वर्ग ने फैसले पर आपत्ति जताई है और छात्रों के लिए भेदभावपूर्ण होने की आशंका व्यक्त की है। कर्नाटक प्रदेश सामान्य नागरिक ध्वनि वेदिके के अध्यक्ष एस. लक्ष्मीनारायण ने शिक्षा मंत्री बी.सी. फैसले पर नागेश की इस फैसल के लिए निंदा की। शिक्षा मंत्री ने शुक्रवार को कहा था कि यह सोचा समझा निर्णय है।

उन्होंने कहा कि यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ है। इससे करोड़ों अभिभावकों और छात्रों में खलबली मच गई। उन्होंने फैसले को वापस लेने की मांग की।

कर्नाटक शिक्षा विभाग उन छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित कर रहा है जो राज्य पाठ्यक्रम का अध्ययन कर रहे हैं। सीबीएसई स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित नहीं की जाती है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में भी परीक्षा नहीं कराई जाती है। बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि यह भेदभाव है।

परीक्षा आयोजित करने की अधिसूचना 12 दिसंबर को जारी की गई थी। छात्र दो महीने में सार्वजनिक परीक्षा की तैयारी कैसे कर सकते हैं, इस पर सवाल उठ रहे हैं।

लक्ष्मीनारायण ने कहा कि मंत्री नागेश ने चुनाव के लिए दिखावा करने के को यह फैसला किया। मंत्री नागेश ने कहा था कि बच्चों की सीखने की क्षमता में सुधार के लिए 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों के लिए सार्वजनिक परीक्षा आयोजित की जाएगी।

इस संबंध में दिए गए आदेश में कहा गया है कि यह फैसला इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कक्षा 1 और 9 में पढ़ने वाले छात्रों के लिए चल रही सतत व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) प्रणाली के तहत छात्रों के समग्र प्रदर्शन को आंकना मुश्किल हो रहा है।

मंत्री नागेश ने कहा था कि यह देखा गया है कि एसएसएलसी (कक्षा 10) की परीक्षा देते समय बच्चे डरे हुए रहते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है।

अधिकारियों का कहना है कि कक्षा 5 और 8 के छात्रों के लिए परीक्षा एसएसएलसी बोर्ड परीक्षा की तरह होगी, लेकिन यह इतनी कठिन नहीं होगी। यह निर्णय लिया गया है कि कोई भी छात्र अनुत्तीर्ण नहीं होना चाहिए।