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झारखंड हाई कोर्ट में JSSC परीक्षा को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित

 
Judgment reserved on petition challenging JSSC exam in Jharkhand High Court

रांची, 8 सितंबर । झारखंड हाई कोर्ट में बुधवार को झारखंड कर्मचारी चयन आयोग स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली 2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर दोनों पक्षों की सुनवाई पूरी हो गई। कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया। रमेश हांसदा एवं अन्य की ओर से इस संशोधित नियमावली को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई हाई कोर्ट के मुख्य न्यायधीश डॉ रवि रंजन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में हुई।

मामले में राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता सुनील कुमार ने पक्ष रखते हुए कहा कि जेएसएससी स्नातक स्तरीय परीक्षा संचालन संशोधित नियमावली संवैधानिक रूप से सही है। यह भी बताया गया कि जेएसएससी ने नियमावली में संशोधन के माध्यम से यहां की रीति रिवाज और भाषा को परखने के लिए एक मापदंड तैयार किया है। हिंदी और अंग्रेजी को क्वालीफाइंग पेपर वन में रखा गया है। स्थानीय भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए भाषा के पेपर दो से हिंदी या अंग्रेजी को हटाया गया।

पूर्व की सुनवाई में प्रार्थी की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता कुमार हर्ष ने कोर्ट को बताया कि नियमावली में झारखंड के शिक्षण संस्थाओं से मेट्रिक और इंटर की परीक्षा पास करना अनिवार्य है। साथ ही स्थानीय भाषा, रीती रिवाज की भी जानकारी जरुरी है लेकिन आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों के मामले में यह प्रावधान शिथिल रहेगा। ऐसे में उन्हें आरक्षण के बाद अतिरिक्त लाभ देने का कोई औचित्य नहीं है। हिंदी को क्षेत्रीय भाषा की श्रेणी से निकाल दिया गया है। भाषा के पेपर से हिंदी और अंग्रेजी को हटाया जाना अनुचित है, क्योंकि राज्य में सबसे ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं।

यह भी कहा गया गया कि राज्य सरकार की ओर से संशोधित नियुक्ति नियमावली में लगाई गई शर्तों के कारण वैसे अभ्यर्थी आवेदन नहीं कर पा रहे हैं, जिन्होंने राज्य के शिक्षण संस्थाओं से स्नातक की डिग्री हासिल की है लेकिन उन्होंने 10वीं और 12वीं की परीक्षा दूसरे राज्यों में से पास की है। प्रार्थी की ओर से झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग की संशोधित नियुक्ति नियमावली को रद्द करने का आग्रह हाई कोर्ट से किया गया है। कहा गया है की इस नीति से झारखंड के लोग हैं अपने राज्य में नौकरी हासिल नहीं कर सकते हैं, यह भेदभाव वाली नीति है।