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व्यापमं मामले में व्हिसिलब्लोअर को सरकारों ने किया निराश

 
व्यापमं मामले में व्हिसिलब्लोअर को सरकारों ने किया निराश
भोपाल 24 सितंबर - मध्य प्रदेश के व्यवसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले के आरोपियों को सजा दिलाने के लिए व्हिसिलब्लोअर लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं, इसके एवज में उन्हें मुसीबतों का सामना तो करना ही पड़ा है, साथ में उन्हें सिर्फ निराशा हाथ लगी है। वे सरकारों के रवैए से संतुष्ट नहीं हैं। शिक्षा जगत के घोटालों में व्यापमं का नाम न आए, ऐसा हो नहीं सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस घोटाले में राजनेताओं से लेकर अधिकारियों तक की बड़ी भूमिका रही है। उनकी लड़ाई जारी है, मगर किसी बड़े व्यक्ति को सजा न मिलने का व्हिसिलब्लोअर का अफसोस भी है।

व्यापमं के खिलाफ लगातार लड़ाई लड़ने वाले व्हिसिलब्लोअर डॉ. आनंद राय का कहना है कि दोषियों को तब तक सजा नहीं मिल सकती है, जब तक सरकार अपनी जिम्मेदारी का बेहतर तरीके से निर्वहन नहीं करें।

व्यापमं के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ है, क्योंकि जांच एजेंसियों के बाद मामले उच्च न्यायालय तक गए जहां सरकारी वकील को बेहतर तरीके से पक्ष रखना था, मगर ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का बेहतर तरीके से निर्वहन नहीं किया। यही कारण रहा कि आरोपियों को अग्रिम जमानत तक आसानी से मिल गई और ढाई हजार से ज्यादा लोग छूट गए।

डॉ. राय व्यापम मुद्दे को लेकर सरकार के निशाने पर भी रहे हैं, उनका और उनकी पत्नी का तबादला भी इसी के चलते हुआ। राय का दावा है कि अगर सरकारी पक्ष ने अपनी जिम्मेदारी का ठीक तरह से निर्वहन किया होता तो यह स्थिति नहीं होती। लोगों को न्यायालय से जमानत मिलती रही और सरकार की ओर से विरोध तक नहीं किया गया, उल्टा लड़ाई लड़ने वालों को परेशान किया गया।

डॉ. राय ने बताया कि उन्हें हर तरफ से डराया-धमकाया गया मगर हिम्मत नहीं हारी। मुख्यमंत्री तक से प्रलोभन दिए गए, जिसका स्टिंग ऑपरेशन कर उच्च न्यायालय में पेश किया गया है।

एक अन्य व्हिसिलब्लोअर हैं आशीष चतुर्वेदी जो ग्वालियर के निवासी हैं और उन्होंने भी व्यापम को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी है, इसके एवज में उन्हें तरह-तरह से परेशान किया गया और परेशानियां भी झेलनी पड़ी। कई बार इन पर हमले हुए और मौत तक से सामना हुआ।

चतुर्वेदी खुद साइकिल से चलते हैं और उनकी सुरक्षा के लिए तैनात किए गए जवान को भी साइकिल से चलना पड़ता है, कई बार तो स्थिति ऐसी बनी कि साइकिल के डंडे पर आषीष बैठे नजर आए तो पुलिस जवान साइकिल चलाते हुए।

पूर्व विधायक पारस सकलेचा की पहचान व्हिसिलब्लोअर के तौर पर भी है। सकलेचा कहना है कि सीबीआई की जांच भी संतोषजनक तरीके से नहीं चल रही है। कई बार तो ऐसा लगता है कि वह भी उसे मेन्यूप्लेट कर रही है। जांच की रफ्तार भी बहुत धीमी है। मेरे द्वारा सीबीआई को तीन सौ पेज की दस्तावेज सौंपे गए, मगर सीबीआई ने इन दस्तावेजों को जांच में लेना तो दूर उसे राज्य के मुख्य सचिव को भेज दिया।

पारस सकलेचा ने तो व्यापमं घोटाले को लेकर व्यापक जन अभियान भी चलाया और जब विधायक रहे तो विधानसभा में भी व्यापमं के मसले पर पीछे नहीं हटे।

उन्होंने तो वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के समय रतलाम में व्यापमं घोटाले को लेकर एक प्रतियोगिता भी कराई थी, जिसमें व्यापम से जुड़े प्रश्नों को घर-घर तक पहुंचाया था और व्यापमं ज्ञान प्रतियोगिता में सही जवाब देने वालों को एक हजार से पांच हजार तक का इनाम देने का ऐलान किया था। सकलेचा का भी यही अनुभव है कि व्यापमं घोटाले के आरोपियों को बचाने में सरकार जुटी रही।

ज्ञात हो कि व्यापमं घोटाले का खुलासा वर्ष 2013 में हुआ था। उसके बाद राज्य में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की सरकारें रहीं। जांच सीबीआई के पास है। खुलासा भाजपा के शासनकाल में हुआ था, जांच एसटीएफ के बाद एसआईटी और फिर सीबीआई के पास पहुंची। राज्य में दिसंबर 2018 से फरवरी 2020 तक कांग्रेस भी सरकार में रही।