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बच्चों की नींद की कमी: स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी

नीति आयोग के स्वास्थ्य विभाग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल ने हाल ही में एक रिपोर्ट में बताया कि लगभग 25 प्रतिशत स्कूली बच्चे पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहे हैं। यह कमी उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रही है। रिपोर्ट में 12 से 18 वर्ष के किशोरों की नींद की आदतों का विश्लेषण किया गया है, जिसमें 60 प्रतिशत बच्चों में अवसाद के लक्षण पाए गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को रोजाना 7 से 8 घंटे की नींद की आवश्यकता है। इस समस्या के समाधान के लिए स्कूलों और परिवारों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।
 
बच्चों की नींद की कमी: स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी

नीति आयोग की रिपोर्ट में नींद की कमी का खुलासा


नीति आयोग के स्वास्थ्य विभाग के सदस्य, डॉ. (प्रो.) वी.के. पॉल ने हाल ही में एक चिंताजनक तथ्य साझा किया है कि लगभग 25 प्रतिशत स्कूली बच्चे पर्याप्त नींद नहीं ले पा रहे हैं। यह कमी न केवल उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है, बल्कि उनके समग्र विकास और शैक्षणिक प्रदर्शन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है।


रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र (एनएचएसआरसी) और सर गंगा राम अस्पताल के सहयोग से तैयार की गई इस रिपोर्ट में 12 से 18 वर्ष के किशोरों की नींद की आदतों का गहन विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लगभग 22.5 प्रतिशत बच्चों को रात में आवश्यक नींद नहीं मिलती, जिससे उनकी संज्ञानात्मक क्षमताओं पर असर पड़ता है।


नींद की आवश्यकता पर डॉ. वी.के. पॉल की राय

डॉ. पॉल ने नींद को एक आवश्यक जैविक आवश्यकता बताया, जो मस्तिष्क के सही कार्य, याददाश्त, रोग प्रतिरोधक क्षमता और समग्र प्रदर्शन के लिए आवश्यक है। उनका कहना है कि बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 7 से 8 घंटे की गुणवत्तापूर्ण नींद लेना बेहद जरूरी है।


नींद में बाधा डालने वाले कारक

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि मोबाइल, टैबलेट, लैपटॉप, और टीवी पर अधिक समय बिताना और देर रात तक ऑनलाइन रहना बच्चों की नींद में बाधा डाल रहा है। इसके अलावा, स्कूल की कड़ी दिनचर्या और बढ़ता शैक्षणिक दबाव भी नींद की कमी के प्रमुख कारण हैं।


मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि 60 प्रतिशत बच्चों में अवसाद के लक्षण देखे गए हैं, जबकि 65.7 प्रतिशत बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता में गिरावट आई है। बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. लतिका भल्ला ने कहा कि नींद की कमी बच्चों को मानसिक अस्थिरता की ओर ले जा रही है, जिससे उनकी पढ़ाई और समग्र विकास प्रभावित हो रहा है।


समाधान के लिए आवश्यक कदम

डॉ. पॉल ने सुझाव दिया कि स्कूल, परिवार और नीति निर्माता मिलकर बच्चों की नींद को प्राथमिकता दें। स्कूलों को बच्चों की नींद को ध्यान में रखते हुए टाइम टेबल बनाना चाहिए और माता-पिता को भी घर में ऐसी जीवनशैली अपनानी चाहिए जो बच्चों की नींद को बढ़ावा दे। उन्होंने जोर देकर कहा कि नींद को शिक्षा और पोषण की तरह ही स्वास्थ्य नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाना चाहिए ताकि हमारे बच्चे स्वस्थ, बुद्धिमान और सक्षम बन सकें।


स्मरणीय बातें

स्मरणीय: बच्चों की अच्छी नींद न केवल उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करती है, बल्कि उनकी सीखने की क्षमता और भावनात्मक संतुलन के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इसलिए इस विषय पर सजग रहना और सुधार के लिए ठोस कदम उठाना सभी का कर्तव्य है।