दिल्ली विश्वविद्यालय में पाठ्यक्रम से हटाए गए विवादास्पद विषय

दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग का नया निर्देश
दिल्ली विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग को हाल ही में एक निर्देश प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि स्नातक (यूजी) और स्नातकोत्तर (पीजी) पाठ्यक्रमों में पाकिस्तान के प्रसिद्ध कवि और विचारक मुहम्मद इकबाल और प्राचीन ग्रंथ मनुस्मृति से संबंधित किसी भी सामग्री को शामिल नहीं किया जाएगा। यह आदेश 12 जून को अकादमिक डीन द्वारा जारी किया गया था, और विभाग को 16 जून तक इसकी समीक्षा करने का निर्देश दिया गया है।
डीन के कार्यालय से भेजे गए ईमेल में स्पष्ट किया गया है कि यूजी और पीजी पाठ्यक्रम (एनईपी के तहत) की सभी सेमेस्टर इकाइयों और रीडिंग लिस्ट में इन तीनों विषयों का उल्लेख नहीं होना चाहिए।
सभी संकाय सदस्यों को पाठ्यक्रम की सामग्री की गहन जांच करने के लिए कहा गया है। एक विभागीय सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि कुलपति ने पिछले कुछ वर्षों में बार-बार कहा है कि समाज को विभाजित करने वाले विषय विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ाए जाएंगे।
इकबाल से संबंधित सामग्री पहले भी हटाई जा चुकी है, लेकिन कुछ विभाग इसे नए पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रयास कर रहे थे। 2023 में बीए (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान पाठ्यक्रम से मुहम्मद इकबाल पर आधारित एक इकाई को हटा दिया गया था। इकबाल, जो 'सारे जहां से अच्छा' के लेखक हैं, को बाद में पाकिस्तान का राष्ट्रीय कवि घोषित किया गया।
इसी वर्ष, विनायक दामोदर सावरकर पर एक नया वैकल्पिक पाठ्यक्रम जोड़ा गया।
विवादास्पद विषयों की हटाने की सिफारिश
इस महीने की शुरुआत में, मनोविज्ञान पाठ्यक्रम से कश्मीर और इजरायल-फिलिस्तीन जैसे विवादास्पद मुद्दों को हटाने की सिफारिश की गई थी। यह कहा गया था कि ये विषय विवादास्पद हैं और इनका मनोवैज्ञानिक संदर्भ स्पष्ट नहीं है। इसके बजाय, गांधी और बुद्ध जैसे भारतीय विचारकों को अधिक महत्व देने की बात की गई थी।
बायोपॉलिटिक्स कोर्स का रद्द होना
इसके अतिरिक्त, दर्शनशास्त्र विभाग के नए कोर्स बायोपॉलिटिक्स को भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने रद्द कर दिया है। पहले इसे राजनीति विज्ञान से संबंधित बताया गया था, लेकिन बाद में इसे पूरी तरह से हटा दिया गया। विभाग के कुछ शिक्षकों का मानना है कि यह कोर्स आवश्यक था, लेकिन समय की कमी के कारण वे इसका विरोध नहीं कर सके। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन बदलावों को सामाजिक एकता बनाए रखने के लिए उठाया गया कदम बताया है।