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CBSE का नया SAFAL प्रणाली: परीक्षा के तरीके में बदलाव

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने परीक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण बदलाव की घोषणा की है। SAFAL प्रणाली के तहत, छात्रों की समझ और ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग का परीक्षण किया जाएगा। यह नया ढांचा बच्चों को रटने की आदत से मुक्त करेगा और उन्हें वास्तविक कौशल में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा। जानें इस नई प्रणाली के उद्देश्यों और इसके कार्यान्वयन के बारे में।
 
CBSE का नया SAFAL प्रणाली: परीक्षा के तरीके में बदलाव

परीक्षा प्रणाली में बदलाव


सीबीएसई अब परीक्षा के तरीके में एक महत्वपूर्ण बदलाव करने जा रहा है। नया SAFAL प्रणाली बच्चों की समझ, सोचने की क्षमता और ज्ञान के व्यावहारिक उपयोग का परीक्षण करेगा, जिससे वे 21वीं सदी के कौशल में आगे बढ़ सकें।


नई शिक्षा नीति के तहत बदलाव

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) स्कूल शिक्षा और परीक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव करने जा रहा है। बच्चों को अब केवल रटने की आदत से मुक्त किया जाएगा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) के तहत, CBSE एक विशेष ऑनलाइन प्लेटफॉर्म शुरू करेगा, जो यह दर्शाएगा कि छात्रों ने अपने विषयों को कितना समझा है और क्या वे उन्हें वास्तविक जीवन में लागू कर पा रहे हैं।


सीखने का हिस्सा बनेगी परीक्षा

इस बदलाव का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आने वाली पीढ़ी केवल अंक प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित न करे, बल्कि वास्तविक कौशल में भी उत्कृष्टता हासिल करे। CBSE की नई योजना में, परीक्षाएं अब अध्ययन का अंत नहीं, बल्कि इसका एक आवश्यक हिस्सा मानी जाएंगी।


कौशल आधारित मूल्यांकन

CBSE ने पहले से ही कक्षा 6 से 10 के लिए एक कौशल आधारित मूल्यांकन ढांचा लागू किया है। यह ढांचा विज्ञान, गणित और अंग्रेजी जैसे मुख्य विषयों में छात्रों की समझ, तर्क और अवधारणाओं पर केंद्रित है।


SAFAL परीक्षा क्या है?

CBSE अब कक्षा 3, 5 और 8 के लिए SAFAL (Structured Assessment for Analyzing Learning) नामक एक नई परीक्षा प्रणाली पेश कर रहा है। यह ऑनलाइन परीक्षा छात्रों की मौलिक समझ, तर्क, ज्ञान के उपयोग और सोचने की क्षमता का परीक्षण करेगी।


उद्देश्य

  • बच्चों ने विषय को कितनी गहराई से सीखा है, यह निर्धारित करना।
  • यह स्पष्ट रूप से पहचानना कि कौन सा बच्चा किस क्षेत्र में पीछे है।
  • शिक्षकों को डेटा प्रदान करना, जिससे वे बच्चों की आवश्यकताओं के अनुसार अपने शिक्षण विधियों को अनुकूलित कर सकें।