×

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का प्रमोशन पर महत्वपूर्ण निर्णय

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें प्रमोशन को मौलिक अधिकार नहीं माना गया है। यह फैसला एक महिला कर्मचारी की याचिका पर आया, जिसने प्रमोशन में नाम न शामिल करने का आरोप लगाया था। अदालत ने विभाग की दलीलों को सही मानते हुए प्रमोशन के विभागीय निर्णय को बरकरार रखा। जानें इस फैसले के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

महत्वपूर्ण निर्णय का सारांश


पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि प्रमोशन किसी कर्मचारी का मौलिक अधिकार नहीं है। यह फैसला पटियाला की एक महिला कर्मचारी की याचिका पर आया, जिसने प्रमोशन में नाम न शामिल करने का आरोप लगाया था।


अदालत ने विभाग की दलीलों को सही मानते हुए प्रमोशन के विभागीय निर्णय को बरकरार रखा। निर्णय में कहा गया कि प्रमोशन कानून के तहत अनिवार्य नहीं है, लेकिन नाम पर विचार करना एक महत्वपूर्ण अधिकार है। यह निर्णय सरकार और कर्मचारियों दोनों के लिए मार्गदर्शक साबित होगा।


मुकदमे की पृष्ठभूमि

महिला ने 1990 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट में काम करना शुरू किया और 2023 तक वह डिस्ट्रिक्ट टाउन प्लानर के पद तक पहुंच गईं। इस दौरान वह सीनियर पद के लिए भी पात्र बन चुकी थीं। हालांकि, विभाग ने उनके प्रमोशन पर विचार नहीं किया, जिससे वह निराश होकर अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुईं।


विकलांगता सर्टिफिकेट का मुद्दा

महिला ने सेवा के दौरान विकलांगता सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया, जिसमें अस्थायी सुनने की अक्षमता 41 प्रतिशत दर्शाई गई थी। बाद में एक और सर्टिफिकेट में यह प्रतिशत 53 दिखाया गया। विभाग ने इस पर संदेह जताया और मेडिकल बोर्ड ने उन्हें अस्थायी रूप से दिव्यांग माना। इसके आधार पर विभाग ने 58 वर्ष की उम्र में रिटायर करने का निर्णय लिया।


कोर्ट का तर्क

जस्टिस नमित कुमार की अदालत ने कहा कि प्रमोशन कोई निहित या मौलिक अधिकार नहीं है। प्रमोशन के लिए नाम पर विचार करना मौलिक अधिकार है, लेकिन प्रमोशन प्राप्त करना ऐसा अधिकार नहीं है। अदालत ने प्रतिवादियों की दलीलों को सही ठहराया और कहा कि विभाग ने निर्णय में कोई गलती नहीं की।


भत्ते और अन्य याचिकाएं

दिलचस्प बात यह है कि महिला को सेवा के दौरान सीनियर टाउन प्लानर के कार्यभार सौंपे गए थे। अदालत ने इस पर ध्यान दिया और भत्ते तथा समय पर भुगतान के लिए याचिका को स्वीकार किया। यह निर्णय महिला के पक्ष में एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि कार्यभार सौंपे जाने पर भत्ते और भुगतान का अधिकार बन जाता है।