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हलगा गांव में पढ़ाई के लिए अनोखी पहल: डिजिटल ब्रेक से बढ़ी एकाग्रता

हलगा गांव ने बच्चों की पढ़ाई के लिए एक अनोखी पहल शुरू की है, जिसमें शाम 7 से 9 बजे तक डिजिटल उपकरणों का उपयोग बंद किया जाता है। इस पहल का उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल प्रदान करना है। गांव के लोग इस समय को परिवार के साथ बिताते हैं, जिससे बच्चों की एकाग्रता में सुधार हो रहा है। यह अभियान महाराष्ट्र के नो-स्क्रीन अभियानों से प्रेरित है और अब यह अन्य गांवों के लिए भी एक मिसाल बन रहा है।
 

गांव में पढ़ाई का माहौल


हलगा गांव में शिक्षा का माहौल किसी उत्सव से कम नहीं है, लेकिन यहां का जश्न शोर का नहीं, बल्कि सन्नाटे का है। जैसे ही शाम 7 बजे सायरन बजता है, गांव के लोग अपने टीवी बंद कर देते हैं और मोबाइल फोन को साइलेंट मोड में डाल देते हैं। यह सब बच्चों की बोर्ड परीक्षा की तैयारी के लिए किया जा रहा है।


गांव की सोच से शुरू हुआ अभियान

यह पहल पूरी तरह से गांव के लोगों की सहमति से शुरू की गई है, जिसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई के लिए बेहतर माहौल प्रदान करना है। शाम 7 से 9 बजे के बीच गांव की गलियों में शांति छा जाती है, जहां केवल किताबों की सरसराहट और परिवार की बातचीत सुनाई देती है। बच्चे SSLC जैसे महत्वपूर्ण बोर्ड परीक्षा की तैयारी में अधिक ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं।


सहमति से लागू नया टाइम-टेबल

हलगा गांव में यह पहल पंचायत और स्थानीय लोगों की आपसी समझ से शुरू हुई। सायरन डिजिटल उपकरणों को बंद करने का संकेत देता है। गांव के लोग इसे नियम नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। इससे बच्चों को पढ़ाई के लिए शांत वातावरण मिल रहा है।


डिजिटल ब्रेक का असर

गांव की महिलाएं भी इस मुहिम में शामिल हैं। वे टीवी सीरियल्स देखने के बजाय घर के काम निपटा रही हैं। बच्चे मोबाइल पर समय बर्बाद करने के बजाय पढ़ाई में जुट जाते हैं। यह 2 घंटे का डिजिटल ब्रेक बच्चों की एकाग्रता को बेहतर बना रहा है।


SSLC बोर्ड परीक्षा की तैयारी में मदद

यह अभियान विशेष रूप से SSLC बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए सहायक साबित हो रहा है। घर के बड़े भी इस दौरान बच्चों को परेशान नहीं करते। 2 घंटे की शांति से पढ़ाई का दबाव कम हो रहा है और तैयारी मजबूत हो रही है।


महाराष्ट्र से प्रेरणा

हलगा गांव ने यह विचार महाराष्ट्र में चल रहे नो-स्क्रीन अभियानों से लिया है। इसका उद्देश्य बच्चों को डिजिटल लत से दूर रखना है। लोगों का समर्थन बढ़ने के साथ यह मुहिम मजबूत होती गई है।


छोटी पहल, बड़ा संदेश

गांव के लोग मानते हैं कि यह कदम केवल 2 घंटे के लिए टीवी और फोन बंद करने का नहीं है, बल्कि बच्चों के भविष्य को बेहतर दिशा देने का है। यह गांव साबित कर रहा है कि बदलाव बड़े शहरों से नहीं, बल्कि छोटी सोच से भी शुरू हो सकता है।