वंदे मातरम: आज़ादी की लड़ाई का प्रेरणादायक गीत
भारतीय इतिहास में वंदे मातरम का महत्व
भारतीय इतिहास में कई ऐसे क्षण हैं जो समय के साथ भी अपनी चमक नहीं खोते। जब हम स्वतंत्रता संग्राम की बात करते हैं, तो न केवल वीर स्वतंत्रता सेनानियों की बहादुरी का स्मरण होता है, बल्कि उन गानों और नारों का भी, जिन्होंने पूरे देश में आज़ादी की लहर को जन्म दिया। इनमें सबसे प्रमुख और शक्तिशाली आवाज़ थी – ‘वंदे मातरम’। आज लोकसभा में इस राष्ट्रीय गीत पर 10 घंटे की चर्चा होने जा रही है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे से भाग लेंगे। इस गीत के महत्व पर बहस सड़कों से लेकर संसद तक तेज़ हो गई है।
इस गीत ने गुलामी की बेड़ियों को चुनौती दी, लाखों भारतीयों को एकजुट किया और संघर्ष के मार्ग में उनकी थकान को दूर किया। 150 साल पहले रचित यह गीत आज भी वही ऊर्जा और गर्व जगाता है, जैसा कि स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में था।
वंदे मातरम की रचना की पृष्ठभूमि
19वीं सदी में, ब्रिटिश सरकार ने एक आदेश जारी किया था जिसमें सार्वजनिक स्थानों पर ‘गॉड सेव द क्वीन’ गाना अनिवार्य कर दिया गया था। इस आदेश से बंकिम चंद्र चटर्जी बहुत परेशान हुए और उनके मन में यह सवाल उठा कि क्या हमें अपनी मातृभूमि पर किसी विदेशी शक्ति की तारीफ करनी चाहिए। इस विचार ने उन्हें प्रेरित किया और उन्होंने भारत माता की महिमा में एक भजन लिखने का संकल्प लिया।
लगभग 1875 में, ‘वंदे मातरम’ की धुन बंकिम चंद्र चटर्जी की कलम से निकली, और यह रचना आनंद मठ उपन्यास से निकलकर पूरे भारत में गूंजने लगी। इसे सुनने वाले हर क्रांतिकारी को ऐसा लगा जैसे यह गाना सीधे उनके दिल से बात कर रहा हो।
संस्कृत और बंगाली का संगम
इस रचना की विशेषता यह है कि इसके प्रारंभिक छंद संस्कृत में हैं, जबकि बाद की पंक्तियाँ बंगाली में हैं, जो इसे एक विशेष मधुरता प्रदान करती हैं। जब रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता सत्र में इसे संगीत के साथ प्रस्तुत किया, तो सभा में उपस्थित हजारों लोगों की आँखें गर्व और भावनाओं से भर गईं।
बाद में, अरविंद घोष ने इसका शानदार अंग्रेजी अनुवाद किया, जिसने इसे विश्वभर के विद्वानों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
आज़ाद भारत में वंदे मातरम का स्थान
जब भारत ने 24 जनवरी, 1950 को अपना संविधान अपनाया, उसी दिन वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत का दर्जा दिया गया। इसे राष्ट्रगान 'जन गण मन' के समान सम्मान प्राप्त हुआ। आज, 150 साल बाद, यह गीत न केवल गाया जाता है, बल्कि यह भारतीयों के लिए प्रेरणा और भावनाओं का एक जीवंत स्रोत बना हुआ है।