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JNU : 52 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों से, महिला शोधार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक

देश के सबसे विख्यात विश्वविद्यालयों में शुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 52 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों - एससी, एसटी और ओबीसी से हैं। यही नहीं जेएनयू की खासियत यह भी है कि यहां महिला शोधार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक है।
 
नई दिल्ली, 11 मार्च- देश के सबसे विख्यात विश्वविद्यालयों में शुमार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में 52 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों - एससी, एसटी और ओबीसी से हैं। यही नहीं जेएनयू की खासियत यह भी है कि यहां महिला शोधार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार 10 मार्च को नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि पूरे भारत के छात्र जेएनयू में पढ़ते हैं। यह विश्वविद्यालय विविधताओं के बीच भारत की सांस्कृतिक एकता का जीवंत प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है। इस विश्वविद्यालय में कई अन्य देशों के छात्र भी अध्ययन करते हैं। इस तरह एक शिक्षण केंद्र के रूप में जेएनयू का आकर्षण भारत से बाहर भी है।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने जेएनयू को विविधता वाला संस्थान बताया। उन्होंने बताया कि जेएनयू में देश के सभी हिस्सों से छात्र पढ़ने आते हैं। शिक्षा मंत्री ने यहां विश्वविद्यालय की डिबेट को भी महत्व दिया। उन्होंने कहा कि यह एक शोध विश्वविद्यालय है। देश में जेएनयू जैसा कोई बहु-विविध संस्थान नहीं है।

वहीं राष्ट्रपति ने कहा कि जेएनयू अपनी प्रगतिशील गतिविधियों और सामाजिक संवेदनशीलता, समावेशन व महिला सशक्तिकरण के संबंध में समृद्ध योगदान के लिए जाना जाता है।

राष्ट्रपति ने कहा कि जेएनयू के छात्रों व शिक्षकों ने शिक्षा और शोध, राजनीति, सिविल सेवा, कूटनीति, सामाजिक कार्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, मीडिया, साहित्य, कला व संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावशाली योगदान दिया है। उन्होंने आगे इस पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की कि जेएनयू 'नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क' के तहत देश के विश्वविद्यालयों के बीच साल 2017 से लगातार दूसरे स्थान पर है।

राष्ट्रपति ने कहा कि जेएनयू की सोच, मिशन और उद्देश्यों को इसके संस्थापक विधानों में व्यक्त किया गया। इन बुनियादी आदशरें में राष्ट्रीय एकता, सामाजिक न्याय, धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक जीवनशैली, अंतरराष्ट्रीय समझ और समाज की समस्याओं को लेकर वैज्ञानिक ²ष्टिकोण शामिल हैं। उन्होंने विश्वविद्यालय समुदाय से इन मूलभूत सिद्धांतों के अनुपालन के संबंध में अटल रहने का अनुरोध किया।

राष्ट्रपति ने कहा कि चरित्र निर्माण भी शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। तात्कालिक बहाव में आकर चरित्र निर्माण के अमूल्य अवसरों को कभी नहीं गंवाना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवा छात्रों में जिज्ञासा, प्रश्न करने और तर्क के उपयोग की एक सहज प्रवृत्ति होती है। इस प्रवृत्ति को सदैव प्रोत्साहित करना चाहिए। युवा पीढ़ी द्वारा अवैज्ञानिक रूढ़ियों के विरोध को भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। विचारों को स्वीकार करना या खारिज करना, वाद-विवाद और संवाद पर आधारित होना चाहिए।

राष्ट्रपति ने कहा कि एक विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों को पूरे विश्व समुदाय के बारे में चिंतन करना होता है। जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, युद्ध व अशांति, आतंकवाद, महिलाओं की असुरक्षा और असमानता जैसे अनेक मुद्दे मानवता के सामने चुनौतियां प्रस्तुत कर रहे हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों ने व्यक्ति और समाज की समस्याओं का समाधान खोजा है और समाज के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि इन मुद्दों को लेकर सतर्क और सक्रिय रहना विश्वविद्यालयों की जिम्मेदारी है।

राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय हमारे स्वतंत्रता संग्राम के आदशरें को बनाए रखने, संविधान के मूल्यों का संरक्षण करने और राष्ट्र निर्माण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में अपना प्रभावी योगदान देंगे।

जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुडी पंडित के मुताबिक विश्वविद्यालय में 52 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी और ओबीसी की आरक्षित श्रेणियों से हैं। दीक्षांत समारोह में कुल 948 शोधार्थियों को डिग्री प्रदान की गई है।